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यूएनजीए में एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से की मुलाकात, व्यापार समझौते को मिली रफ्तार

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आज सोमवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्र...


नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आज सोमवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की। यह मुलाकात दोनों नेताओं की इस साल की व्यापारिक तनातनी के बाद पहली आमने-सामने की बातचीत थी। भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के महीनों में तनाव देखने को मिला था, खासकर तब जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ लगा दिया था। इसके बावजूद दोनों देश अब संबंध सुधारने और एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) की दिशा में काम कर रहे हैं। इस संबंध में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अगुवाई में भारतीय प्रतिनिधिमंडल वॉशिंगटन में वार्ता कर रहा है।

इससे पहले 16 सितंबर को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) के अधिकारियों के भारत दौरे के दौरान “सकारात्मक चर्चा” हुई और दोनों पक्षों ने जल्द ही पारस्परिक रूप से लाभकारी समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में काम तेज करने पर सहमति जताई। राष्ट्रपति ट्रंप ने भी भरोसा जताया है कि भारत और अमेरिका के बीच समझौता करने में “कोई कठिनाई नहीं” होगी। इस मुलाकात से पहले जयशंकर और रुबियो की बातचीत जुलाई में वॉशिंगटन में 10वें क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान हुई थी। जनवरी में भी दोनों नेताओं की चर्चा हुई थी, लेकिन व्यापारिक विवादों के बाद यह उनकी पहली सीधी मुलाकात रही।

इसी बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के हालिया आदेश से अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के बीच चिंता बढ़ी है। नए आदेश के तहत एच-1बी वीजा के लिए नए आवेदकों को 1 लाख डॉलर की फीस देनी होगी। हालांकि व्हाइट हाउस ने साफ किया है कि यह शुल्क केवल नए आवेदनकर्ताओं पर लागू होगा, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं। इस महीने की शुरुआत में जब ट्रंप ने सर्जियो गोर को भारत में अमेरिकी राजदूत नियुक्त करने के लिए नामित किया, तो रुबियो ने सीनेट की विदेश मामलों की समिति के सामने भारत को अमेरिका के “सबसे अहम रिश्तों में से एक” बताया। उन्होंने कहा, “21वीं सदी की कहानी इंडो-पैसिफिक में लिखी जाएगी और भारत इसका केंद्र है। यही कारण है कि हमने अपने कॉम्बैटेंट कमांड का नाम बदलकर इंडो-पैसिफिक कमांड रखा।”

जयशंकर और रुबियो की यह मुलाकात भारत-अमेरिका संबंधों में नई ऊर्जा भरने और व्यापारिक मतभेदों को दूर करने की दिशा में अहम मानी जा रही है।

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