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छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2025 का समापन: लोकसंगीत, नृत्य और कलाशक्ति का मनमोहक संगम

  रायपुर,6 नवम्बर 2025 छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की रजत जयंती के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय राज्योत्सव 2025 का समापन सांस्कृतिक रंगों और संगीत...

 


रायपुर,6 नवम्बर 2025 छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की रजत जयंती के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय राज्योत्सव 2025 का समापन सांस्कृतिक रंगों और संगीत की मनमोहक प्रस्तुति के साथ हुआ। समापन दिवस की संध्या ने छत्तीसगढ़ी परंपरा, संगीत और लोकसंस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक पंथी-कर्मा नृत्य से हुआ। ढोल-मांदर की थाप और सामूहिक नृत्य मुद्राओं ने मंच को जीवंत बना दिया। पारंपरिक वेशभूषा और छत्तीसगढ़ी लोकताल की थिरकन ने पूरे वातावरण को राज्य की माटी की महक से भर दिया। लोककला की सशक्त प्रतिनिधि पूनम विराट तिवारी ने अपने लोकमंच से राज्योत्सव की शाम को लोकगीतों की भावनाओं से सराबोर कर दिया।

उन्होंने “चोला माटी के राम”, “छत्तीसगढ़ मया के धरती” और “अरपा पैरी के धार” जैसे गीतों के माध्यम से लोकजीवन की सादगी, करुणा और भक्ति को अभिव्यक्त किया। उनकी प्रस्तुति पर दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ झूम उठे।

समारोह का चरम क्षण तब आया जब मंच पर पहुंचे देश के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक कैलाश खेर।उन्होंने अपनी अनूठी आवाज़ में पिया के रंग रंग दीन्ही ओढ़नी,आदि योगी,कौन है वो कौन है वो कहां से वो आया,बुमलहरी और क्या कभी अम्बर से' जैसे गीत प्रस्तुत किए। उनकी सुमधुर गायकी ने दर्शकों को भावनाओं के संगीत के सागर में डुबो दिया।

कैलाश खेर ने कहा कि छत्तीसगढ़ केवल संस्कृति की धरती नहीं, बल्कि यह संगीत, संवेदना और सादगी का प्रतीक है। मुझे गर्व है कि मैं इस पवित्र भूमि के उत्सव का हिस्सा बना।

समापन समारोह में लोक, शास्त्रीय और आधुनिक संगीत का ऐसा संगम देखने को मिला, जिसने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता को एक सूत्र में पिरो दिया। राज्य के लोक कलाकारों के समूह नृत्य, पारंपरिक वेशभूषा और उत्साहपूर्ण प्रस्तुतियों ने वातावरण को उत्सवमय बना दिया।

राज्योत्सव की इस अंतिम संध्या में हजारों दर्शकों की उपस्थिति रही।पूरा पंडाल तालियों और झूमते कदमों से गूंज उठा। राज्योत्सव 2025 का यह समापन समारोह छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों के संगीतमय मेल का जीवंत उदाहरण बन गया।

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