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धुर साय की बारिश से लड़ाई अब खत्म – मिला प्रधानमंत्री आवास का सहारा

  रायपुर, 12 जून 2025 यूँ तो धूर साय की उम्र अस्सी साल है,लेकिन इनकी जिंदगी में बीते दिनों के मुसीबतों की कहानियां अनगिनत है। घने जंगल के बी...

 


रायपुर, 12 जून 2025 यूँ तो धूर साय की उम्र अस्सी साल है,लेकिन इनकी जिंदगी में बीते दिनों के मुसीबतों की कहानियां अनगिनत है। घने जंगल के बीच समय के साथ कई मुसीबतें आई और गई...लेकिन बारिश के दिनों में आने वाली मुसीबतों से उन्हें कभी छुटकारा नहीं मिल पाता था। जब भी बारिश का मौसम आता..धुरसाय सहित पूरा परिवार तैयारी में जुट जाता..सभी काम छोड़कर घर के खपरैलों को निकालता और सफाई कर फिर से जमाता..ठीक करता। धुरसाय अपनी ओर से तो पूरी कोशिश करता लेकिन बारिश तो बारिश ही थीं.. कब मौसम बदले और कब बरस जाएं.. कुछ कहा नहीं जा सकता था..। मौसम के बदलाव के साथ बारिश हर बार धुरसाय के खपरैल वाले कच्चे मकान के लिए मुसीबत बनकर ही बरसती थी। खपरैलों को ठीक करने के बाद भी वह बारिश के कहर से नहीं बच पाता था। एक दिन उन्हें भी मालूम हुआ कि प्रधानमंत्री आवास योजना से उनका भी पक्का मकान बन सकता है तो उन्होंने देर नहीं की। आखिरकार पात्रता के बाद धूर साय को पीएम आवास मिला तो उनके खुशी का ठिकाना न रहा,क्योंकि एक लंबे अरसे बाद उन्हें कच्चे मकान के साथ ही खपरैल पलटने से भी मुक्ति मिल गई।

कोरबा जिले में पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के अंतर्गत दूरस्थ ग्राम पतुरियाडाँड़ में रहने वाले धुरसाय ने बताया कि वह अपनी पत्नी मोती कुँवर के साथ रहता है। जंगल में रहते हुए जिंदगी कट गई। उन्होंने बताया कि जैसे तैसे उन्होंने अपना आशियाना तैयार तो कर लिया लेकिन घर पक्का नहीं होने से हर साल बारिश के साथ ही मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। धुरसाय ने बताया कि घर की दीवारें उखड़ने के साथ ही खपरैल भी इधर-उधर हो जाते थे। इसलिए बारिश से पहले जहाँ खपरैलों को ठीक करना जरूरी होता था वहीं बारिश में छत से पानी टपकने से परेशानी होती थी। बारिश के बाद उखड़ी हुई दीवारों की छबाई करनी जरूरी होती थी। उन्हें प्रधानमंत्री आवास मिलने से इन सभी समस्याओं से मुक्ति मिल गई है। धुरसाय ने बताया कि वह खेती किसानी करता है, लेकिन अब उम्र के साथ उन्हें ऐसे ही आशियाने की जरूरत थी,जिसमे उन्हें कोई परेशानी न हो। पीएम आवास योजना से मिले पक्के मकान से मुसीबतों से भी मुक्ति मिल गई है। सरकार का धन्यवाद, जिन्होंने हम जैसे जंगल में रहने वाले गरीबों के लिए सोचा।

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